ईरानः बहाई लोग जिन्हें दो ग़ज़ ज़मीन भी हासिल नहीं

दिल्ली का लोटस टेम्पल वैसे तो भारत में एक पर्यटन केंद्र के रूप में जाना जाता है लेकिन कम ही लोगों को मालूम होगा कि ये दरअसल बहाई धर्म का पूजा स्थल है.

बहाई धर्म की जड़ें ईरान में हैं जहां बीते कुछ समय से इस समुदाय में असुरक्षा की भावना बढ़ गई है.

ईरान में बहाई समुदाय के नेताओं को जेल में डालने की घटनाएं लोग भूले भी नहीं थे कि इसी साल सितंबर में एक ईरानी नागरिक समशी अक़दसी आज़मियान का शव दमावंद के इलाक़े में क़ब्र से बाहर निकालकर दूर जंगल में फेंक दिया गया.

ये घटना स्थानीय अधिकारियों की उस चेतावनी के बाद हुई जिसमें क्षेत्र के बहाई समाज को उनके अपने निजी क़ब्रिस्तान में भी मुर्दे दफ़न करने से मना किया गया था.

इससे पहले भी ईरान के कई शहरों में बहाई समुदाय के क़ब्रिस्तानों में तोड़-फोड़ की घटनाएं होती रही हैं. ऐसा भी हुआ है कि मुर्दे दफ़नाने से रोकने के लिए उनके क़ब्रिस्तान ही बंद कर दिए गए.

बहाई समुदाय के क़ब्रिस्तान को लेकर ईरान में ऐसी असंवेदनशीलता क्यों है?

उनके क़ब्रिस्तान क्यों तोड़े जाते हैं और अपने निजी क़ब्रगाहों में भी उन्हें मुर्दे दफ़नाने से क्यों रोका जाता है?

क्या इस तरह का बर्ताव इस्लामी शरीयत के मुताबिक़ वाजिब है? ख़ासकर शिया इस्लामी क़ानून, जिसकी बुनियाद पर ईरान का इस्लामी गणतंत्र काम करता है?

ऐसे सवालों की एक लंबी फेहरिस्त है जिनके जवाब न केवल बहाई लोग खोज रहे हैं बल्कि ग़ैरबहाई भी इस बारे में जानना चाहते हैं.

कौन हैं ये बहाई लोग?

बहाई दुनिया के सबसे नए धर्मों में गिना जाता है. इसकी स्थापना बहाउल्लाह ने साल 1863 में ईरान में की थी.

बहाई लोग ये मानते हैं कि दुनिया के सभी धर्म सच्चे हैं और सभी लोगों को मानवता के फ़ायदे के लिए मिलकर काम करना चाहिए.

बहाई लोगों का दमन
बहाई लोगों को उनके विशेष क़ब्रिस्तान में मुर्दों को दफ़न करने से रोकने, उनके क़ब्रिस्तान में तोड़-फोड़ और दफ़न लाशों को बाहर निकालकर फेंक देने के पीछे मक़सद इस अल्पसंख्यक समुदाय को मिटाना और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उनकी सामाजिक मौजूदगी ख़त्म करना है.

बहाई समुदाय पहले से ही मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में अपने मुर्दे को दफ़न नहीं कर सकते हैं और अब नई घोषणा पर अमल करते हुए अपने सामुदायिक क़ब्रिस्तान में भी दफ़न नहीं कर पाएंगे तो फिर उनके लिए मुर्दा दफ़नाने की कोई जगह ही नहीं बचती है.

मुर्दा दफ़नाने से रोकने की ये घोषणा उस सिलसिले की एक कड़ी है जिसके तहत बहाई लोगों को अपने धार्मिक और सांस्कृतिक रीति रिवाज अपनाने और अपने पसंद की शिक्षा पाने से रोका जा रहा है.

इन दबावों का एक उद्देश्य ये भी है कि बहाई समुदाय के लोग मजबूर होकर अपना धर्म छोड़ दें और इस्लाम क़बूल कर लें.

Comments

Popular posts from this blog

बाघ ही क्यों हो जाता है बाघ के खून का प्यासा

Xiaomi ने लॉन्च किया Black Shark Helo, ये दुनिया का पहला ऐसा स्मार्टफोन जिसमें मिलेगी 10 जीबी रैम

تقنية ذكاء اصطناعي "تتفوق" على الأطباء في تشخيص سرطان الثدي