इमारत बनाने वाली जगह पर मिले 1000 यहूदियों के कंकाल
युवा सिपाही बहुत एहतियात और धीमी गति से मानव कंकालों पर जमी सदियों की गर्द साफ़ करते हैं. हड्डियों के साथ कपड़ों के चिथड़े और जूते चप्पल हैं.
ये सिपाही पश्चिमी बेलारूस में एक निर्माण स्थल पर अतीत में हुए नरसंहार के इतिहास की वो परतें कुरेदने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम जानकारी है.
पॉश इलाक़े के एक अपार्टमेंट ब्लॉक में इमारत बनाने के लिए हुई खुदाई में सामूहिक क़ब्र मिली थी.
तबसे ख़ास प्रशिक्षित सिपाही अबतक 1,000 यहूदियों के अस्थि पंजर निकाल चुके हैं, जिन्हें नाज़ी जर्मनी के क़ब़्जे के दौरान ब्रेस्ट शहर में मार डाला गया था.
इस काम में लगे बेलारूस के सिपाही दमित्री कैमिंस्की कहते हैं, "कपाल में गोली के छेद बिल्कुल साफ़ दिखाई देते हैं."
उनकी टीम आम तौर पर सोवियत सिपाहियों के कंकाल ढूंढने का काम करती है.
यहां उन्हें छोटे बच्चों के कपाल भी मिले और महिलाओं के ऐसे कंकाल भी मिले जिनकी गोद में बच्चे थे.
दमित्रि के अनुसार, "लोगों के सिर में पीछे से गोली मारी गई थी और सभी शवों का चेहरा क़ब्र में नीचे की ओर था. नाज़ियों ने खाईयां खोदीं और लोगों को गोली मारी गई, वे इसमें गिर गए, फिर गोली मारी गई, वे फिर इसमें गिरे."
दूसरे विश्वयुद्ध के पहले ब्रेस्ट शहर की कुल आबादी 50,000 थी, जिसमें आधे यहूदी थे.
जून 1941 में जब जर्मनी ने यहां क़ब्ज़ा किया उसके कुछ ही दिन बाद 5,000 लोगों को मार दिया गया.
जो बच गए उन्हें बंद बस्तियों (घेट्टो) में सीमित कर दिया गया, ये कंटीले तारों से घिरे सिटी सेंटर के रिहाईशी ब्लॉक थे.
अक्तूबर 1942 में आदेश आया कि इन्हें भी ख़त्म कर दिया जाए. उन्हें मालगाड़ी से 100 किलोमीटर दूर जंगल की ओर ले जाया गया.
मिखाईल कैपलान कहते हैं, "जब मेरे मां बाप लौटे तो शहर आधा ख़ाली हो चुका था."
जब जर्मन सैनिक शहर पर क़ब्ज़ा कर रहे थे, उस समय उनके मां बाप बाहर गए हुए थे, इसलिए वो बच गए थे.
मिखाईल उस फ़ोटो को देखते हैं, जिसमें उनके चाचा-चाचियां और चचेरे भाई हैं, जो मारे जा चुके थे.
वो याद करते हुए कहते हैं, "इसके बारे में मेरे पिता ने एक शब्द नहीं बताया...ये बहुत दर्दनाक था. लेकिन अपने बच्चों को याद करती हुई मेरी दादी रोती रहती थीं."
वो कहते हैं कि हर कोई जानता है कि यहां क्या हुआ था, "लेकिन कोई भी खुलकर नहीं बोलता, जर्मनों ने हमें जानबूझकर ख़त्म किया. सोवियत चुपचाप देखते रहे."
ब्रेस्ट में जो म्यूज़ियम है वो भी एक तहख़ाने के एक कमरे में है, जिसे यहूदी समुदाय ने बनाया और वे ही उसकी देखभाल करते हैं.
इसमें उन जीवित बच गए यहूदियों की कहानियां हैं जो महीनों तक अपने घर की छत में बनी छोटी जगहों और दीवारों के पीछे छिपे रहकर जान बचाई.
वहां एक सिटी रजिस्टर भी है जिसे जर्मन रखते थे. इसमें 15 अक्तूबर 1942 का एक रिकॉर्ड दर्ज है जिसमें 17,893 यहूदियों के शहर में होने बात लिखी गई है.
दूसरे दिन के रिकॉर्ड में इस संख्या को काट दिया गया है.
इस समुदाय के नेता एफ़िम बैसिन कहते हैं, "इस तरह से हमने जाना कि घेट्टो के लोगों को भी मार डाला गया."
उन्हें शक था कि निर्माण स्थल पर कुछ लाशें मिलेंगी, लेकिन इतनी मिलेंगी, ये कभी नहीं सोचा था.
वो कहते हैं कि "इससे पता चलता है कि अपने इतिहास के बारे में हम कितना कम जानते हैं."
बेलारूस के यहूदियों का भविष्य हमेशा के लिए उस महाविनाश से जुड़ गया जो क़ब्ज़े के दौरान वहां हुआ था.
एफ़िम याद करते हैं, "अधिकारी सिर्फ़ न भूलने की बात करते रहे, लेकिन यहूदियों पर जो बीता उस पर चुप्पी साध ली गई."
"युद्ध स्मारक सिर्फ़ सोवियत नागरिकों को समर्पित है."
एफ़िम के अनुसार, "ये बहुत दुखद है. यहूदी इसलिए नहीं मारे गए क्योंकि वे नाज़ियों का विरोध कर रहे थे. वे इसलिए मारे गए क्योंकि वे यहूदी थे."
शहर घूमते हुए एफ़िम उन जगहों को दिखाते हैं जहां यहूदी ज़िंदगी की छाप मौजूद है.
इसमें यहूदी पूजा स्थल और गोलाकार सिनेमा हॉल भी मौजूद है, जिन्हें सोवियत दिनों में बनाया गया था. इसके अंदर पत्थर की दीवारें अभी भी उतनी ही मज़बूत हैं कि उन्हें तोड़ पाना मुश्किल है.
ये सिपाही पश्चिमी बेलारूस में एक निर्माण स्थल पर अतीत में हुए नरसंहार के इतिहास की वो परतें कुरेदने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम जानकारी है.
पॉश इलाक़े के एक अपार्टमेंट ब्लॉक में इमारत बनाने के लिए हुई खुदाई में सामूहिक क़ब्र मिली थी.
तबसे ख़ास प्रशिक्षित सिपाही अबतक 1,000 यहूदियों के अस्थि पंजर निकाल चुके हैं, जिन्हें नाज़ी जर्मनी के क़ब़्जे के दौरान ब्रेस्ट शहर में मार डाला गया था.
इस काम में लगे बेलारूस के सिपाही दमित्री कैमिंस्की कहते हैं, "कपाल में गोली के छेद बिल्कुल साफ़ दिखाई देते हैं."
उनकी टीम आम तौर पर सोवियत सिपाहियों के कंकाल ढूंढने का काम करती है.
यहां उन्हें छोटे बच्चों के कपाल भी मिले और महिलाओं के ऐसे कंकाल भी मिले जिनकी गोद में बच्चे थे.
दमित्रि के अनुसार, "लोगों के सिर में पीछे से गोली मारी गई थी और सभी शवों का चेहरा क़ब्र में नीचे की ओर था. नाज़ियों ने खाईयां खोदीं और लोगों को गोली मारी गई, वे इसमें गिर गए, फिर गोली मारी गई, वे फिर इसमें गिरे."
दूसरे विश्वयुद्ध के पहले ब्रेस्ट शहर की कुल आबादी 50,000 थी, जिसमें आधे यहूदी थे.
जून 1941 में जब जर्मनी ने यहां क़ब्ज़ा किया उसके कुछ ही दिन बाद 5,000 लोगों को मार दिया गया.
जो बच गए उन्हें बंद बस्तियों (घेट्टो) में सीमित कर दिया गया, ये कंटीले तारों से घिरे सिटी सेंटर के रिहाईशी ब्लॉक थे.
अक्तूबर 1942 में आदेश आया कि इन्हें भी ख़त्म कर दिया जाए. उन्हें मालगाड़ी से 100 किलोमीटर दूर जंगल की ओर ले जाया गया.
मिखाईल कैपलान कहते हैं, "जब मेरे मां बाप लौटे तो शहर आधा ख़ाली हो चुका था."
जब जर्मन सैनिक शहर पर क़ब्ज़ा कर रहे थे, उस समय उनके मां बाप बाहर गए हुए थे, इसलिए वो बच गए थे.
मिखाईल उस फ़ोटो को देखते हैं, जिसमें उनके चाचा-चाचियां और चचेरे भाई हैं, जो मारे जा चुके थे.
वो याद करते हुए कहते हैं, "इसके बारे में मेरे पिता ने एक शब्द नहीं बताया...ये बहुत दर्दनाक था. लेकिन अपने बच्चों को याद करती हुई मेरी दादी रोती रहती थीं."
वो कहते हैं कि हर कोई जानता है कि यहां क्या हुआ था, "लेकिन कोई भी खुलकर नहीं बोलता, जर्मनों ने हमें जानबूझकर ख़त्म किया. सोवियत चुपचाप देखते रहे."
ब्रेस्ट में जो म्यूज़ियम है वो भी एक तहख़ाने के एक कमरे में है, जिसे यहूदी समुदाय ने बनाया और वे ही उसकी देखभाल करते हैं.
इसमें उन जीवित बच गए यहूदियों की कहानियां हैं जो महीनों तक अपने घर की छत में बनी छोटी जगहों और दीवारों के पीछे छिपे रहकर जान बचाई.
वहां एक सिटी रजिस्टर भी है जिसे जर्मन रखते थे. इसमें 15 अक्तूबर 1942 का एक रिकॉर्ड दर्ज है जिसमें 17,893 यहूदियों के शहर में होने बात लिखी गई है.
दूसरे दिन के रिकॉर्ड में इस संख्या को काट दिया गया है.
इस समुदाय के नेता एफ़िम बैसिन कहते हैं, "इस तरह से हमने जाना कि घेट्टो के लोगों को भी मार डाला गया."
उन्हें शक था कि निर्माण स्थल पर कुछ लाशें मिलेंगी, लेकिन इतनी मिलेंगी, ये कभी नहीं सोचा था.
वो कहते हैं कि "इससे पता चलता है कि अपने इतिहास के बारे में हम कितना कम जानते हैं."
बेलारूस के यहूदियों का भविष्य हमेशा के लिए उस महाविनाश से जुड़ गया जो क़ब्ज़े के दौरान वहां हुआ था.
एफ़िम याद करते हैं, "अधिकारी सिर्फ़ न भूलने की बात करते रहे, लेकिन यहूदियों पर जो बीता उस पर चुप्पी साध ली गई."
"युद्ध स्मारक सिर्फ़ सोवियत नागरिकों को समर्पित है."
एफ़िम के अनुसार, "ये बहुत दुखद है. यहूदी इसलिए नहीं मारे गए क्योंकि वे नाज़ियों का विरोध कर रहे थे. वे इसलिए मारे गए क्योंकि वे यहूदी थे."
शहर घूमते हुए एफ़िम उन जगहों को दिखाते हैं जहां यहूदी ज़िंदगी की छाप मौजूद है.
इसमें यहूदी पूजा स्थल और गोलाकार सिनेमा हॉल भी मौजूद है, जिन्हें सोवियत दिनों में बनाया गया था. इसके अंदर पत्थर की दीवारें अभी भी उतनी ही मज़बूत हैं कि उन्हें तोड़ पाना मुश्किल है.
Comments
Post a Comment