'अमरीका-तालिबान समझौते से भारत चारों ख़ाने चित': पाकिस्तान से उर्दू प्रेस रिव्यू

पाकिस्तान से छपने वाले उर्दू अख़बारों में इस हफ़्ते अफ़ग़ानिस्तान शांति समझौता, दिल्ली के दंगे, ट्रंप का भारत दौरा और भारत प्रशासित कश्मीर से जुड़ी ख़बरें सबसे ज़्यादा सुर्ख़ियों में रहीं.

बसे पहले बात अमरीका और तालिबान के बीच समझौते की.

अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाल करने के लिए अमरीका और तालिबान के बीच क़तर की राजधानी दोहा में शनिवार को समझौता हो गया.

पाकिस्तान के सारे अख़बारों में ये सबसे पहली ख़बर है.

अख़बार 'जंग' के अनुसार तालिबान की तरफ़ से मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर और अमरीका की तरफ़ से अफ़ग़ानिस्तान के लिए उनके विशेष दूत ज़िलमे ख़लीलज़ाद ने दस्तख़त किए.

इस मौक़े पर अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा, ''तालिबान ने अपने सकारात्मक रवैये और आचरण से शांति के लिए संजीदगी का सबूत दिया है. अगर तालिबान ने शांति समझौते का पूरी तरह से पालन किया तो अंतरराष्ट्रीय जगत का तालिबान के प्रति रवैया भी सकारात्मक होगा.''

अख़बार नवा-ए-वक़्त के अनुसार पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि भारत ने अफ़ग़ानिस्तान शांति समझौते में रुकावट डालने की पूरी कोशिश की लेकिन उसमें वो बुरी तरह नाकाम रहा. क़ुरैशी के अनुसार अमरीका और तालिबान के बीच समझौते के लिए पूरी दुनिया पाकिस्तान के किरदार का लोहा मान रही है.

अख़बार दुनिया ने लिखा है कि अमरीका और तालिबान के बीच समझौते से भारत चारों ख़ाने चित हो गया है.

अख़बार डेली पाकिस्तान ने तालिबान पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रहीमुल्लाह यूसुफ़ज़ई से बातचीत को छापा है. रहीमुल्लाह यूसुफ़ज़ई ने कहा है कि ''तालिबान ने 70 साल पहले ब्रिटेन को शिकस्त दी थी जो उस समय सुपर पावर थी, 30 साल पहले सोवियत रूस को शिकस्त दी थी और आज तालिबान के हाथों अमरीका की शिकस्त हुई है.''

अख़बार एक्सप्रेस ने लिखा है कि अमरीका और तालिबान के समझौते से 19 सालों से चली आ रही ख़ूनी जंग समाप्त हो जाएगी. इन 19 वर्षों में अमरीका और नेटो के 3500 सैनिक मारे गए जबकि अफ़ग़ानिस्तान के एक लाख आम नागरिक मारे गए. इस दौरान अमरीका को दो हज़ार अरब डॉलर का आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ा.

दिल्ली में हिंसा की गुजरात दंगों से तुलना

दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों से जुड़ी ख़बरें भी पाकिस्तानी अख़बारों में प्रमुखता से छप रही हैं.

दिल्ली में सोमवार-मंगलवार को हुए दंगों में अब तक 42 लोग मारे जा चुके हैं और 200 से ज़्यादा घायल हैं.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि दिल्ली में गुजरात जैसा ज़ुल्म दोहराया जा रहा है.

अख़बार एक्सप्रेस के अनुसार इमरान ख़ान ने कहा है, ''मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए मुसलमानों पर ज़ुल्म-ओ-सितम ढाया और अब हम दिल्ली में भी ऐसा ही देख रहे हैं.''

इमरान ने आगे कहा कि अगर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने भारत को न रोका तो दुनिया पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.

अख़बार नवा-ए-वक़्त ने सुर्ख़ी लगाई है, ''दिल्ली जल रही है, मोदी चैन की बांसुरी बजा रहे हैं. दुनिया दबाव डाले.''

अख़बारों में उन मामलों का भी ज़िक्र है जिनमें मुसलमानों ने हिंदुओं को या हिंदुओं ने मुसलमानों की जान बचाई है.

अख़बार एक्सप्रेस ने सुर्ख़ी लगाई है, ''फ़साद में इंसानियत की ख़ातिर हिंदू पड़ोसी ने मिसाल क़ायम कर दी.''

अख़बार में दिल्ली के संजीव कुमार का ज़िक्र है जिन्होंने दंगों के दौरान अपने मुसलमान पड़ोसी मुजीबुर्रहमान की जान बचाई.

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से जुड़ी ख़बरें भी सारे पाकिस्तानी अख़बारों में छाईं रहीं.

अख़बार जंग के संपादकीय पेज पर मोहम्मद फ़ारूक़ चौहान का एक लेख छपा है जिसका शीर्षक है, ''ट्रंप का भारत दौरा और अंतरराष्ट्रीय शांति.''

चौहान लिखते हैं कि ट्रंप का भारत दौरा दर असल भारत को आधुनिक हथियार बेचने की डील थी. लेकिन वो आगे ट्रंप की जमकर आलोचना करते हुए लिखते हैं, ''ट्रंप का भारत दौरा, भारत में बसने वाले 22 करोड़ मुसलमानों और कश्मीरी अवाम के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा है. अमरीकी राष्ट्रपति को भारत के अल्पसंख्यकों और निहत्थे कश्मीरियों पर होने वाले ज़ुल्म के बारे में बोलने तक की हिम्मत नहीं हुई.''

लेख में अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर भी निशाना साधा गया है. चौहान लिखते हैं, ''ट्रंप के भारत दौरे के समय ही भारत में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ होने वाले विरोध प्रदर्शनों पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ख़ामोश तमाशाई बना रहा.''

लेख में इस्लामिक देशों की भी आलोचना की गई है क्योंकि वो भी कश्मीर और दूसरे मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ खड़े नहीं दिख रहे हैं.

लेख में इमरान ख़ान की भी आलोचना की गई है.

मोहम्मद फ़ारूक़ चौहान लिखते हैं, ''इमरान ख़ान का ट्रंप के साथ दोस्ती का दावा सरासर ग़लत है. अमरीका हमारे साथ सिर्फ़ ज़बानी जमाख़र्च की नीति अपना रहा है. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की ख़ामोशी इमरान ख़ान की विदेश नीति की नाकामी है.''

भारत प्रशासित कश्मीर के बारे में भी इमरान ख़ान पर हमला करते हुए लिखा गया है, ''पाकिस्तान का केवल विरोध दर्ज करा देना काफ़ी नहीं, सरकारें विरोध नहीं करतीं, वो क़दम उठाती हैं.''

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